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Yashvi bali

Others

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Yashvi bali

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तलाश और तराश ….

तलाश और तराश ….

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तलाश और तराश …

थोड़ा सा फ़र्क़ …..ल और र का 

छोटा सा शब्द …. एक इंसान को 

एक शख़्सियत ….. बना जाता है 

ग़र …..


यूँ ही ….. अपने ऊपर और अपने वतन पे ….

गर्व सा महसूस करती हूँ मैं …

वैसे तो हर शख़्स …..

जिस मिट्टी में पैदा हुआ …

उसकी ख़ुशबू की महक ..

अपने अंदर समेट के जीता है 


अपना वतन …, 

अपनी मिट्टी का …..

मोह लिए ही जाता है ….


ख़ुशियाँ भी ढेरों बटोरता है 

समेटता भी है..,,

फिर भी आधा अधूरा सा 

कुछ तलाशने में …सब गँवाता है 


पता है … यहाँ रैन बसेरा है 

किसी सुबह के पैग़ाम से 

पहले चल जाना है …

जी ले कुछ पल …..

बिना तलाश किए ….. उस चाह को 


जा ना मिला …….वो मेरा ना था 

शायद वो नही पाना है ….. 

पर समझ नही पाता …


इस बात में नींद ,चैन ,सुकून गँवाता है …..

तलाशता जो औरों में …… मैं 

ग़र खुद को तराश लेता …. तो 


दांव पे ना लगाता कभी …

अनमोल जीवन जो मिला ….

उस की कृपा से ….

आराम से जी के …. चला जाता 

तलाश में अनदेखी ,….

अनजानी सी …चाह ..की 

खुद को ना तराशा।


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