तिल भर
तिल भर
रतू दादा बड़े मज़ाकी,
सेंस ऑफ ह्यूमर,
उनकी बड़ी ग़ज़ब की।
एक दिन डोलू बोला,
खड़ा अंडा तोड़ना नामुमकिन ,
ढेरों अंडे , खड़े लगाऊंगा,
हाथी फिर उस पे चढ़ाऊंगा ।
इतने अंडे खुद खाकर,
चल लोगे हाथी उठा कर।
दादा जी ने तुर्रा लगाया,
बेचारा डोलू बहुत शर्माया।
एक दिन मैंने गाना गाया,
यूं तो हमने लाखों हंसीन देखे है।
दादा जी ने हसीन , को गधा बताया,
ऐसे मुझ को , गधा बनाया।
एक दिन जब दादा खाना खाते ,
किस्से अपने खूब बताते।
सब्जी खत्म थाली में,
रोटी बची थी ज़रा सी।
दादा जी ने सब्जी मांगी
तिल भर सब्ज़ी देना,
कौर दो कौर ही है, खाना।
ले लो तिल भर सब्जी ,दादा जी,
चाचा ने एक बूंद थाली में टपकाई।
हंसे पेट पकड़ कर सारे ,
झेंपे दादा बेचारे।