तहज़ीब
तहज़ीब
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हुनरमंदी तुम्हारी कुछ काम न आयी
पत्थर ही पड़े रहे हम, मूरत तराशी न गयी
तहज़ीब सीखा दो हवाओं को
रोशनदान से जरा आया करे
बंद रहती हैं घर की खिड़कियाँ
परदों को यूं खोला न करे
कच्चे घरों में रहने का सुकून
आलीशान मकानों में कहाँ मिलता है
माँ के हाथों का चाय पराठा
पांच सितारा होटलों में नहीं मिलता है
गुरबत में बीती हो जिंदगी जिनकी
तकदीर पर गुरुर करें भी तो कैसे
ख़रीद लाते हैं आज़ाद करने परिंदों को
कैद परवानों को देखे भी तो कैसे
हुक्मरान अपनी अकड़ में ही
दंगों का धंधा करते पकड़े गये
अमन की आबो हवा में चैन की
साँसे खत्म करते गये