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Phool Singh

Others

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Phool Singh

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तांडव

तांडव

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प्रकृति का तांडव देखकर, हर जीव भय से थर्राया है 

आपदा-विपदा की ऐसी घड़ी ये, दु:ख-दर्द भी अश्रु बहाया है||


संभल चुके थे पहले गिरकर, ये कुछ लोगो को रास न आया है 

इंसान हो गए पिंजेरे के कैदी, क्यूँ, संकट को फिर से बुलाया है||


चुनाव की रैली ज़ोर-शोर से, संकट, कुम्भ में डुबकी लगाया है 

अपनी तो चिंता है नहीं, क्यूँ, ओरों का संकट बढ़ाया है||


चिकित्सक, रक्षक सेवा करते, सुख-चैन भी सबने गंवाया है 

कमी हो रही ऑक्सीज़न/बिस्तरों की अब, क्यूँ, जीवन का दांव लगाया है||


कितनी सख्ती, कितने पहरे, लॉकडाउन व कर्फ़्यू खूब लगाया है 

प्रशासन ने जो शक्ति दिखाई, फिर आरोप भी खूब लगाया है||


कष्टों को अपने क्यूँ बढ़ाता, दिल घर-परिवार में क्यूँ न लगाया है

घर-दफ्तर का काम करो, क्यूँ न, वक़्त परिवार के संग बिताया है||


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