तांडव
तांडव
प्रकृति का तांडव देखकर, हर जीव भय से थर्राया है
आपदा-विपदा की ऐसी घड़ी ये, दु:ख-दर्द भी अश्रु बहाया है||
संभल चुके थे पहले गिरकर, ये कुछ लोगो को रास न आया है
इंसान हो गए पिंजेरे के कैदी, क्यूँ, संकट को फिर से बुलाया है||
चुनाव की रैली ज़ोर-शोर से, संकट, कुम्भ में डुबकी लगाया है
अपनी तो चिंता है नहीं, क्यूँ, ओरों का संकट बढ़ाया है||
चिकित्सक, रक्षक सेवा करते, सुख-चैन भी सबने गंवाया है
कमी हो रही ऑक्सीज़न/बिस्तरों की अब, क्यूँ, जीवन का दांव लगाया है||
कितनी सख्ती, कितने पहरे, लॉकडाउन व कर्फ़्यू खूब लगाया है
प्रशासन ने जो शक्ति दिखाई, फिर आरोप भी खूब लगाया है||
कष्टों को अपने क्यूँ बढ़ाता, दिल घर-परिवार में क्यूँ न लगाया है
घर-दफ्तर का काम करो, क्यूँ न, वक़्त परिवार के संग बिताया है||