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Haripal Singh Rawat (पथिक)

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4.8  

Haripal Singh Rawat (पथिक)

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स्वतंत्र

स्वतंत्र

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खुश हूँ कि स्वतंत्र हूँ।

प्रगतिशील गणतंत्र हूँ।


पर ड़रती हूँ, 

कि कोई देख न ले, 

आँखों में दबी वेदना को,

रुह पर बने ज़ख्मों को,


ज़ख्म

हाँ! ज़ख्म जो नासूर से हैं

रोज बनते हैं नए, 

कुरेदे जाते हैं।


दर्द

दर्द उस बचपन का,

जो पिस चुका है, पिस रहा है, 

भूख और गरीबी के, दरमियान।


दर्द

दर्द उस तनुज का,

जिसके मसृण, देह को

सरहदों पर

भेद दिया गया, भेदा जा रहा है,

उग्र - तप्त सयस से।


दर्द

दर्द उस वनिता का,

जिसे जला दिया गया, 

जलाया जा रहा है।

यौतुक की लालसा में।


दर्द

दर्द उस मानवी मूर्त का,

जिसके अस्तित्व को

मिटा दिया गया, मिटाया जा रहा।

पाशविक धारणा से।


हाँ! यह भी सच है

कि ड़रती हूँ अब ये कहने से,

कि खुश हूँ स्वतंत्र हूँ। 

प्रगतिशील गणतंत्र हूँ।


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