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सूखे पत्ते की सिसक़ी

सूखे पत्ते की सिसक़ी

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सूखे पत्ते की सिसक़ी

सूखे एक पत्ते को आज

सिसकते मैंनें देखा है 

बेसहारा, अपनों से लिपटते और बिछड़ते  मैंनें देखा है ॥

 

पटें  हैं हाथ खिलौंनों से   

बस चाहत कागज़ की फिरकी की मासूम खाली  हाथों को

तरसते मैंनें देखा है .

 

राहें गुलज़ार हैं अब भी   .

मरे पत्तों की आमद से

सुनाने धड़कनों को अपनी ,  

तरसते मैंनें देखा है  

 

कभी सड़कें रंगी  होतीं थी

गिरे टेसू के फूलों  से

शराफत के चढ़े रंगों को

उतरते मैंनें देखा है ॥

 

 

भागते टायर और संग रहग़ुज़र बीच

भटक आये किसी पत्ते की

बूढ़ी रीढ़ ज़र्ज़र  को

चटखते मैंनें  देखा है

 

सुनहरी रेख इक गिरती

मेरे आंगन के कोने में

नन्ही एक चिड़िया को

फुदकते मैंने देखा है

 

 

 

 

 

 

 

 

 


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