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Phool Singh

Others

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Phool Singh

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सर्दी

सर्दी

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मैं इठलाती, मैं बलखाती,

ठंडी हवा संग, बढ़ती हूँ

वर्षा ऋतु, के बाद में आकर,

अपना जाल, बिछाती हूँ

मैं शरद ऋतु कहलाती हूँ।।


कहीं थपेड़े पवन दिलाती, कहीं, बर्फ पिघलाती हूँ 

कहीं, तरसते लोग धूप को 

कहीं कंपकंपी, खूब दिलाती हूँ 

वर्षा ऋतु, के बाद में आयी 

शरद ऋतु कहलाती हूँ।।


कोई निकाले कम्बल अपने, 

कोई रजाई खोज रहा

कोई जला के, अंगीठी अपनी,

हाथ, आग में शेख रहा

नए बिरंगे फूल खिलाती, ऋतुओं में भेद कराती हूँ ।।


वृद्धजनों, की शामत लाती, बच्चों संग खेल दिखाती हूँ

युवाओं की, बन सखी

परिवर्तन का नियम, समझाती हूँ, 

वर्षा ऋतु के बाद में आयी,

शरद ऋतु कहलाती हूँ।।


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