सपनों की पौध
सपनों की पौध
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बचपन में अपने आँगन में
मैंने भी कुछ सपने बोये थे !
उम्मीदों से सींचा उन सबको,
अरमानों की थोड़ी खाद डाली
और आशा-रूपी धूप लगवाई !
कुछ पनप गए कुछ सूख गए,
खर-पतवार की संज्ञा दे कर
कुछ बड़े-बुज़ुर्गों ने तोड़ दिए !
और नये-नये सपनों के पीछे
कुछ को मैं ख़ुद भूल गया !
नादान था पर ना समझ सका
इंसानों और पौधों ही की तरह,
इन सपनों की भी अपनी एक
फ़ितरत ज़रूर हुआ करती है।
एक से पानी, खाद या धूप से
सब बीज पौधे नहीं बना करते !