सोंधी मिट्टी
सोंधी मिट्टी
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उस गाँव की सोंधी मिट्टी में पलके
आज बड़े शहर में आ तो गए
कुछ परंपरा निभा तो रहे है
संस्कृति से परे रह तो रहे है
बस यूँ ही कुछ कह तो रहे है
पता नही क्यों जी नहीं रहे है
चाहा तो बहुत एक नई दुनिया बन जाये
कुछ गाँव कुछ शहर आ जाये
पर ऐसा कुछ हुआ नही
थोड़ी संस्कृति थोड़ी परंपरा बन जाये
सब कुछ अधूरा अधूरा बीच का रह गया
सही कहा है दो नाव में कौन सफर कर पाया
हम भी आज वही रह गए
उन पुराने दिनों की याद में
अपने आज को नापने में
फिर कुछ पूरा नही हुआ
आज भी एक हिस्सा
उस पुराने का मेरे अंदर ज़िंदा है
एक नया अपनी ही मटर भुनाने में लगा है
चलो कुछ तो होगा ही।