सिर्फ तुम
सिर्फ तुम
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कल तक मेरी राहें तुम से मिल नहीं पाती थी
आज नई तस्वीर दिखती है
एक नदी की धारा मैं ,तुम आसमान विशाल
सिर्फ अपने फितूर में चलती राहें
तुमसे निगाह परे
तुम्हारे प्यार की चादर मेरा साया बन
कभी प्यार में के लिए मचलती मैं
कभी अपनी राह का रोड़ा समझ मुड़ जाती
असमान कब नदी से दूर हुआ है ?
कोशिश तो बहुत की पर रूह से
कब साया जुदा हुआ है
प्यारऔर बहुत प्यार ही, झिलमिलाया है
हम तुम समानांतर चलने वाले कब वक़्त पे थामे है
उन पानी की बूंदों ने तुमसे मुझे मिलाया है
आज फिर एक बार प्यार को जताने
तुमने आसमान में इंद्रधनुष बनाया है
परछाई तो मेरी ही है -- साया का अक्स तभी तो तुममे पाया है
इठलाती मेरी चाल पे तुमारी हवाओं ने संदेश पहुँचाया है
सूरज की गर्मी ने कभी रुलाया है कभी तपाया है
जीवन के हर रंग ने मुझे तुमसे मिलवाया है
मेरे गुस्से को भी खूब तुमने सुनामी तक पहुँचाया है
इसी आपाधापी में जीवन बिताया है
चलो दिलदार चलो एक नई कश्ती में
बहुत से दिलो की हसरत को हमने पार लगाया
आजबहुत अरसे बाद तुमसे गले लगने को मन ललचाया है