सीता की अग्नि परीक्षा कब तक
सीता की अग्नि परीक्षा कब तक
गीत
ऐ रखवालों सोचो
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जब कासा लिये हाथ नारी ,
फुटपाथों पर मिल जाएगी ।
ऐ रखवालो सोचो तुम को ,
क्या शर्म नहीं तब आएगी ।।
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तुम कहते नारी को माता ,
क्यों भटक रही है सड़कों पर ।
जिसको गुलशन में खिलना था ,
क्यों चटक रही है सड़कों पर ।।
तुम जिसको इज्जत कहते हो ,
क्यों मारी मारी फिरती है।
जिससे सुरभित घर होना था ,
क्यों अपमानों से घिरती है ।।
जब अग्नि परीक्षा हर सीता,
देते देते थक जाएगी।
ऐ रखवालो सोचो तुम को ,
क्या शर्म नहीं तब आएगी।।
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जो आधे वस्त्रों में तन को ,
ढांके दर दर पर जाती हैं।
ये वही नारियां तो हैं जो ,
सौभाग्यवती कहलाती हैं।।
हो चाहे उम्र कोई उनकी,
नारी तो नारी होती हैं ।
घर घर की देवी पूजा की,
सचमुच अधिकारी होती हैं ।।
वो ही परोसती तन को जब,
बाजारों में मिल जाएगी ।
ऐ रखवालो सोचो तुमको ,
क्या शर्म नहीं तब आएगी ।।
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"अनन्त" वो आंगन की तुलसी,
क्यों लाचारी में जीती है ।
जो अन्नपूर्णा कहलाती
क्यों बीमारी में जीती है।।
दुत्कारी जाती क्यों दर दर,
क्यों बिना मौत मर जाती हैं।
लाशें जिंदा बन जाती क्यों,
अभिशापित खुद को पाती हैं।।
आधी आबादी जब तुमको,
ही गुनाहगार ठहराएगी।
ऐ रखवालों सोचो तुम को
क्या शर्म नहीं तब आएगी।।
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अख्तर अली शाह "अनंत "नीमच
