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Vijay Kumar parashar "साखी"

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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श्राद्ध

श्राद्ध

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श्राद्ध तो श्रद्धा का

एक प्यारा त्योहार है,

अपनो के प्रति एक

प्रेम भरा व्यवहार है,

पूर्वजों को लगता

है ये बहुत ही प्यारा,

ये एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी

को देने का उपहार है।


सबसे अच्छा श्राद्ध तो वो है,

जीते जी खिलाये,

मरने के बाद खिलाये

वो तो बस दिखावे का एक तार है.

मां बाप के कपड़े फ़टे हैं

ठंड से वो बहुत डरे हैं,

उनको मरने के बाद कपड़े पहनाये

ये कौनसा श्राद्ध करने का आचार है?


माता पिता बिखलते हैं,

बुढापे में वो हिचकते हैं,

मांगने पर भी खाना न देना,

मरने पर श्राद्ध करने

का कौनसा सार है?

आज कलियुग की दुनिया है

जीते जी तो सेवा नहीं करते हैं,

मरने पर श्राद्ध कर 

आज के श्रवण कुमार करते हैं,

जैसे बहुत बड़ा उपकार है।

जीते जी ही माता पिता की सेवा कर लो

सच्चे श्राद्ध की बस यही पुकार है,

मरने के बाद कौन देखता है,

जीवित ही कर दो उनके लिये कुछ

यही कहलायेगा श्राद्ध का प्यार है।



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