STORYMIRROR

Vishu Tiwari

Others

4  

Vishu Tiwari

Others

शर शैय्या पर थे भीष्म

शर शैय्या पर थे भीष्म

1 min
302

शर शैय्या पर थे भीष्म पड़े पीड़ा थी तन-मन में।

देख रहे थे वीरव्रती वो पीड़ा को हर कण कण में।


काश वचन से बंधा न होता धर्मनिष्ठ रह पाता,

चीर-हरण का दृश्य देख ना मौन कभी रह पाता।।


हे धर्मनिष्ठ कुल श्रेष्ठ पितामह कैसा राजसिंहासन।

हे राजभवन के शक्ति केन्द्र ये कैसा अनुशासन।।


भरी सभा अपमानित देखा क्यूं ना भुजा फड़कती।

भीष्म प्रतिज्ञा लिया तो नभ बिजली सुना कड़कती।।


काश उठा लेता असि को भीषण संग्राम नहीं होता।

अपमानित ना होती नारी यह रक्तपात भी ना होता।।


क्यूॅं मौन रहा लाक्षागृह पर द्युतक्रीड़ा पर मौन रहा।

क्यूॅं मौन रहा व्यभिचारी संग क्यूॅं छल पर मौन रहा।।


अभिशाप बना मेरा जीवन राजसिंहासन से बंधकर।

संताप बना ये महायुद्ध निज भीष्म प्रतिज्ञा से बंधकर।।


मंथन करता वह महारथी नि:शक्त पड़ा शरशैय्या पर।

ऑंखों से निकला खारा जल बहता श्वेत कपोलों पर।।


हाँ कर्ण महादानी योद्धा प्रतिबद्ध रहे हो वचनों से।

आहत तू भी होता होगा कपटी शकुनि के चालों से।।


ये धर्मयुद्ध का समर क्षेत्र बस धर्म ध्वजा लहरायेगा।

यह हवनकुंड बनवारी का आहुति योद्धा बन जाएगा।।


हे द्रोण धन्य हो तुम गुरूवर अर्जुन जैसा वीर दिया।

धर्मज्ञ युधिष्ठिर महारथी महाबली महारथी भीम दिया।।



Rate this content
Log in