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Reena Goyal

Children Stories

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Reena Goyal

Children Stories

शिशिर ऋतु है आयी

शिशिर ऋतु है आयी

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सुबह हुई है सिमट धुंध में ,ठिठुरन करती अगुआई ।

 रंग सभी कुहरे में लिपटे ,शीत लहर यूँ गहराई ।


शरद उगलती भांप साँस से,जमते पलकों के घेरे ।

सिकुड़न बढ़ती अंग -अंग में ,हुए ठंड के जब फेरे ।

ढके ओस से गांव शहर सब ,नहीं दीखती परछाई ।

रंग सभी कुहरे में लिपटे ,शीत लहर यूँ गहराई ।


दुबका है मधुमास धुंध में ,पतझड़ की अब बारी है ।

पाला लटका है पेड़ों पर ,ओलों की तैयारी है ।

ओढ़ रजाई कम्बल बैठे ,हाल बुरा अब तो भाई ।

रंग सभी कुहरे में लिपटे ,शीत लहर यूँ गहराई ।


अकड़ बढ़ी सर्दी की ऐसी ,जकडन में है जग सारा ।

जीरो डिग्री से भी नीचे ,जा पहुंचा है अब पारा ।

कांप रहा है गात दीन का ,शिशिर हुआ है दुखदाई ।

रंग सभी कुहरे में लिपटे ,शीत लहर यूँ गहराई ।


दिन हैं छोटे रातें लंबी ,आग सेकते हैं साये ।

लगा दिसम्बर अब गाजर के, हलवे को मन ललचाये ।

तिल के लड्डू ,मूंगफली अरु रेवड़ियां मन को भाई ।

रंग सभी कुहरे में लिपटे ,शीत लहर यूँ गहराई ।।




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