शिक्षा
शिक्षा
आज की शिक्षा!
दिशा विहीन, अंधकारों से लिप्त
व्यावसायिक होती जा रही है।
ज्ञान उपजे भीतर या हवा हवाई ही हो
मगर पैसों से अब ज्ञान बिकता है।
'विद्यालय' जो कभी ज्ञान का मन्दिर था
सिर्फ अब एक दुकान बन गया है।
शोषण होता है आये दिन समाज का
इंसान तो अब हैवान बन गया है।
इससे अच्छा तो वो गुरुकुल था
जहाँ ज्ञान के साथ
संस्कार भी मुफ़्त में बांटे जाते थे
गुरु के साथ पल-पढ़ के
समाज को चमकाते थे।
आज शिक्षा की अस्मिता पर
प्रश्न-चिन्हों के अम्बार हैं दिखते
देखकर दुनिया भर का भौकाल
लोग सिर्फ लुटते यहाँ हैं।
झूठ साबित हो रहे अब अधिकांश
'विद्या ददाति विनयम्'
'अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता'
जबसे यह नया ट्रेड आ गया है।
ज्ञान हो रहा धूमिल अहंकारों से मिलकर
हो रहे सब नष्ट आचरण अब दिल से
जबसे देखो यहाँ पैसा छा गया है।