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शीर्षक - डोर

शीर्षक - डोर

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वादा तो मनाने का था मनमानी का नहीं-नहीं
राही राह में मगर कुछ दूर तो साथ चलते
कुछ हम कहते कुछ तुम कहते
यूँ दर्दे दिल तो बयां करते
ये कौन सी मज़बूरी थी जो पड़ गये अकेले हम
वादा तो जिंदगी का था गुमनामी का नहीं।

दिल में तन्हाई और चेहरे पर हंसी
कुछ तो बात थी कि कभी तुम कभी हम नहीं
तोड़ रिश्ते तो हम भी सारे आए थे फिर कच्ची कहाँ डोर पड़ गयी,
वादा तो चांदनी का था अँधेरे का नहीं।


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