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Vijay Kumar parashar "साखी"

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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शहर से गांव भला

शहर से गांव भला

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अरे शहर तुझसे तो मेरा गांव ही है, भला

कम से कम बोलने में तो नहीं है, मुँहजला

वहां प पर अपनत्व की नदियां बहती है।

स्वार्थ की किंचित छवि नहीं रहती है,

निःस्वार्थपन में तो मेरा गांव ही है उजला

अरे शहर तू स्वार्थ की है, बहुत बुरी बला

शुद्धता का बहता है, जहां पे पानी निर्मला

अरे शहर तुझसे तो मेरा गांव ही है, भला


जहां पे वसुधैव कुटम्बकम की भावना है,

ऐसा जन्नत से सुंदर मेरा गांव का है, तला

स्वार्थ की जहां पर तेज आंधी चलती है,

वो तो मेरा गांव नहीं, शहर का ही है, गला

फिर आज क्यों कम हो रहा है?

ये गमला क्यों बढ़ रहा, शहरीपन का पागल तबला

शहर छोड़ो, अपने गांवों की ओर लौटो,

गांवों में ही है, मां सा स्नेह देने की कला


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