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Mayank Kumar 'Singh'

Others

5.0  

Mayank Kumar 'Singh'

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सावन

सावन

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सावन तुझे कैसे लिखूं

तेरे भीतर मेरी

अनगिनत यादें हैं

कितनी पोटलियाँ खोलूं

कितनी यादों को समेटूं

सब जगह तुम्हारी छाया है !


प्रियसी से मिलना

फिर बिछड़ना

कुछ संवाद

कुछ एहसास

कुछ अलाप

कुछ विलाप

कुछ सफलता

कुछ विफलता

सब तुझ में ही समाए हैं !


तुम पूछोगे भला कैसे ?

उत्तर भी लेते जाओ -

तुझ में प्रचंड बिजली

की तपिश है

तुझ में करुणा भरी बारिश

तुझ में आक्रोशित पवन है

फिर,

तुझ में ही बारिश की

पहली सुगंध

तुझ में कोयल की पुकार

अरे भूल ही गया !


मेढक की टर -टर -आहट

तुम में ही तो है

और पंछियों को घोसले में

जाने की जल्दी

ग़रीब बच्चों का झरना

सावन तुम ही तो हो !!


इसलिए शायद शिव

की दुलारी ,

सबसे प्यारी

किसानों का उत्साह

और धरती का प्रेम प्रसंग

सब तुम में ही है सावन

भला तुम्हें कैसे लिखूं ,

लिख भी नहीं सकता !


पाताल से प्रलोक तक

सबका हर्ष और उल्लास

सब तुम ही हो सावन

सच में सावन

तुझे मैं लिख भी नहीं सकता !!



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