सावन व रक्षा बंधन
सावन व रक्षा बंधन
रक्षा बंधन
एक अटूट बंधन
बहन भाई के प्रेम का प्रतीक
दिखे प्यार ही प्यार
सावन का महीना
रहती त्योहारों की भरमार ।
सावन कब आया
कब चला गया ...
आज तक न समझ पाई मैं ..
बचपन में देखा था कभी सावन
जब हाथ से बनाते थे सेवियाँ
सारी दोपहर जाग कर
गाने भी गाते थे
बागों में पींग ऊँचे चढ़ाते थे
तोड़ लाते थे आसमान छूती डालियों के पत्ते
न डर न भय
बस ऊँचे जाने की तमन्ना
तमन्ना तो पूरी हुई
पर तरस गई
बचपन के उस सावन के लिए
मशीनी सेविंयाँ बना खुश हो जाते हैं
सावन का शगुन मनाते हैं ।
आबाद रहे मायका
सलामत रहे भाई
सावन फिर भी आयेगा
मायके की याद दिलायेगा
सावन फिर मन जाएगा।
पर राखी सब ठीक कर देती है
भाई आते या मैं जाऊँ
सब शिकवे दूर कर देती है ।
राखी का यह त्योहार
जगाए रखता आस
भैया से होगी मुलाकात
कोथली में आए साज श्रृंगार ।
सब गिले शिकवे मिटा
प्रेम का दीप जला
हर बहन करे सदा
रक्षाबंधन का इंतजार ।
