सावन में घिर आते बदरवा
सावन में घिर आते बदरवा

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सखी घिर आए घिर आए
कारे कारे बदरवा
आँगन आँगन छम छम
पायलिया सी बजती बूंदे
बरसन की मनमोहक धुन में
हूक उठे अंतर मन में
सखी घिर आए घिर आए
कारे कारे बदरवा
भर-भर गागर लाये बदरवा
चंचल चपल हिरणी से
इत उत डोले
आसमां के अचरवा
सखी घिर आए घिर आए
कारे कारे बदरवा
जा कर भर तू
अपनी ताल और तलैया
तब लूंगी मैं तेरी बलईयाँ
गोरी कलईयाँ
हरी- हरी चुड़ियाँ
सिर पर धानी ओढ़नी सुहाए
सखी घिर आए घिर आए
कारे कारे बदरवा