सासु माँ होती अनमोल
सासु माँ होती अनमोल
नई पड़ोसन मेरी आई
देने गए हम सारे बधाई
पड़ोसन मेरी है पैसे वाली
सूरत से बिल्कुल है काली
सबको लगती बड़ी घमंडी
कार में जाती है सब्जी मंडी
साड़ी सूट या हो लहंगे
कपड़े पहनती सारे महंगे
खुले विचारों वाला उसका परिवार
घूमने जाती है हर इतवार
मेरा भी था ऐसा ही ख्वाब
ना कोई घूंघट ना कोई नकाब
एक बात लगी मुझे खास
उसके घर में नहीं थी सास
सास किसी को भला कब सुहाती
सारा दिन जब ताने सुनाती
मेरी सास है एक्सप्रेस मेल
उनके आगे हैं सारे फेल
पति भी था उसका शरीफ
मैंने भी कर दी तारीफ
बहन तुम हो किस्मत वाली
चेहरे पर उसके आई लाली
परिवार तुम्हारा बहुत है सुखी
कभी ना होना पड़े तुम्हें दुखी
उसकी आँखों में आ गई नमी
बोली मेरे जीवन में है बड़ी कमी
माँ से भी बढ़कर थी मेरी सास
आज नहीं है मेरे पास
दुख-दर्द में बहुत काम थी आती
गलतियों पर मुझे हमेशा समझाती
माँ-बाप से नहीं बड़ा कोई धन
सास के बिना नहीं लगता मेरा मन
आशीर्वाद दे गई थी मेरी सास
सब कुछ होगा बेटी तेरे पास
मेरी सास थी बड़ी अनमोल
याद है मुझको उनका हर एक बोल
अपनी सास के उसने किस्से सुनाए
सुनकर मेरे आँसू छलकाए
आँसू पोछ कर आँखें खोली
मेरी पड़ोसन मुझसे बोली
बात पते की तुम से कह रही
असली सुख में तो तुम रह रही
रोज दबाओ सास के पैर और हाथ
ज्यादा लंबा नहीं होता ये साथ
खाना-पीना भी करो अच्छा
सास बहू का रिश्ता सच्चा
सेवा करो उनकी भरपूर
समस्याएँ सारी हो जाएंगी दूर
उसकी बातों से मुझे हुआ एहसास
किस्मत वाले हैं जिनकी होती माँ सास
भावुक मन से घर चली आई
लेट पहुँचने पर सास थी घबराई
माँ जी मैं हूँ बिल्कुल ठीक
याद रखूँगी तुम्हारी हर सीख
सास ने मुझे गले लगाया
प्यार से मेरा सिर सहलाया
सास बहू का देखकर प्यार
छूट गयी सबकी हँसी की फुहार
मन में थी खुशी और संतोष
मिट गई सारी ईर्ष्या व रोष
