सांप्रदायिकता की आग लगाते हैं
सांप्रदायिकता की आग लगाते हैं
इस दौर के युवा ज़्यादातर आराम करना चाहते हैं,
बैठे ठाले कुछ यूं ही सुबह से शाम करना चाहते हैं !
चली है एक आंधी सी संप्रदायिकता की कुछ ऐसी,
कि,ये आतायायी फिर से हमें गुलाम करना चाहते हैं !
पूजे कोई राम को या अपने कौम के किसी नाम को ,
चंद लोग निज धर्म को खामखा बदनाम करना चाहते हैं !
मनाया करो सब अपने पर्व और त्यौहार को पूरे दिल से ,
कोई ना रोको उन्हें करने दो जो ये आवाम करना चाहते हैं !
रस्तों पर होते ही हैं काटेंपत्थर भला उनसे क्या घबराना,
रखो अपने बुलंद हौंसले जिसे लोग सलाम करना चाहते हैं !
बेलौस से कुछ लोग सोच रहे कि करेंगे अपने ही मन की,
ऐसे लोग रुसवा अपने ही धर्म को सरेआम करना चाहते हैं !
ये तो हद ही हो गई कि कोई आवाज़ भी नहीं उठा सकते,
कुछ एक तानाशाही अब अत्याचार खुलेआम करना चाहते हैं !