साईकिल - मेरा तोहफा
साईकिल - मेरा तोहफा
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साईकिल मेरी सवारी,
है वो बड़ी हसरत भरी ,
पहली बार उसे छुआ,
चमक ने लगी सुनहरी।
घर से मैंने उसे निकाली,
पर आती नहीं चलानी,
देख कर बाबा मुझसे बोले,
कैसी लगी जन्मदिन की निशानी ?
साईकिल है जैसे जीवन,
बोले मेरे बाबा,
दो पहियों का सही आचरण,
और कुछ न मांगे ज़्यादा।
हिम्मत जोड़कर मैंने चलायी,
न लगी इतनी मुश्किल।
बाबा बोले वहां देखो,
सामने है तुम्हारी मंज़िल।
