रूह-ए-अंजाम.....!!
रूह-ए-अंजाम.....!!
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तेरा इंतज़ार सुबह ओ शाम करते हैं
इश्क़ तुमसे अब सरेआम करते हैं
तुझे पाने की ख्वाहिश बेहिसाब
चाँद देख दुआ सलाम करते हैं
लब खामोश ....आँखों से गुफ्तगू
बेकरारी अपनी तेरे नाम करते हैं
फासलों के लम्हे रहे जो दरमियाँ
अहसास में तय ये मुकाम करते है
वादों पे लगी उम्मीदों की कतारें
शिद्दत से वफ़ा भी तमाम करते हैं
साँसों को मिले तेरी बेरुखी से बेचैनी
यादों में तड़प का इंतज़ाम करते हैं
हर्फ़ों में पिरोया इश्क़ तेरे जानिब
नंदिता अब रूह-ए-अंजाम करते हैं...!!