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Gantantra Ojaswi

Others

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Gantantra Ojaswi

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रुकना नहीं..

रुकना नहीं..

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राह टेड़ी हो.....भले...पर मै स्वयं उलझा नहीं,

हो तपन कितनी मगर मैं ताप से झुलसा नहीं।

 

विश्व को आक्रान्त करने, दौड़ता विकराल है,

थरथराती है धरा अब, ये नया भूचाल है।

आश्वासनों के गीत बहरे मैं कभी सुनता नहीं..।।

 

तोड़ती श्रद्धा हमें अब, क्यों चले पथ पर अकेले,

देख लो संघर्ष में सब, छिटकते मेले झमेले।

दूसरी-सामर्थ्य से सपने कभी बुनता नहीं।...

 

हास में परिहास में या तुम मिलो उपहास में,

परिचय अपरिचित मूक रहता वेदना संत्रास में।

चाहती है रात पर ये दिन कभी रुकता नहीं।। ....

 


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