रोते रोते हमारा हँसना
रोते रोते हमारा हँसना
बचपन के वो सुहाने दिन,
मोहल्ले में मस्तियाँ करना
आते जाते लोगों को छेड़ना,
पापा के साथ घूमना फिरना
जब मन चाहे उठना और सो जाना,
याद है मुझे वो पल अभी भी
सोचती हूँ तो आंखें भर आती हैं।
गर्मियों में छत पर सोना,
रात को पापा का बाजार से लौटना
साथ में आइसक्रीम का लेकर आना,
सो जाते थे जल्दी ही हम तो
नींद में से जगा कर हमको
आइसक्रीम खिलाना,
सुबह उठकर खाली कप देख
बहुत जोर जोर से रोना
हमने तो आइसक्रीम खाई ही नहीं,
पापा, मम्मी को बोलना
पापा, मम्मी का यह बात सुन,
बेटा तुम ने नींद में खाई थी
तुम को पता नहीं चला।
सच में पापा मैंने खाई थी,
ऐसा कह रोते रोते हमारा हँसना,
ऐसा था हमारा बचपन सुहाना।
