'रे मन'
'रे मन'
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रे मन ! तू थकता नहीं है क्या ?
पल में फूलों पर मँडराता
पल में पेड़ों पर चढ़ जाता,
सागर की गहराई तक जा
नभ के छोरों तक हो आता।
रे मन तू थकता नहीं है क्या?
समय से भी तेज भागे तू
किसी के हाथ न आये तू,
कभी मुस्कान बन आ जाता है
तो कभी आँखे नम कर जाता है ।
रे मन तू थकता नहीं है क्या ?
मुझको भी दे दे थोड़ी अपने जैसी ताकत
जो सोचूँ वो कर जाऊँ दे दे इतना साहस,
हौसला हो बुलन्द कुछ कर गुजरने का
गर आ जाए मुझमें तेरे जैसी हिम्मत।
रे मन तू थकता नहीं है क्या?
