मेरी दोस्त 'अर्शी'
मेरी दोस्त 'अर्शी'
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सोचा
बहुत सोचा
घोड़े दौड़ा लिए दसों दिशाओं में
संदेशा भेजा हवाओं में
सितारों से भी पूछा
पर किसी को कुछ नहीं सूझा
फिर हौले अब बोला दिल से,
बता ना..
दिल भी था कशमकश में
अल्फ़ाज़ ए बयां नहीं था
उसके वश में
फिर समेटा सारे शब्दों को
छान के निकाले कुछ एहसास
चट्टान सी हो तुम जिससे
मुश्किल टकराने में घबराए
है कोमल सा दिल जो जल्दी से
पिघल जाए,
न देखा, न देख पाऊंगी तेरी जैसी
मुझे फक्र है कि मेरी दोस्त है 'अर्शी'
