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कल्पना रामानी

Others

5.0  

कल्पना रामानी

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रधिया रानी

रधिया रानी

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दिनचर्या के गुणा-भाग से

रधिया ने नवगीत रचा।


जाग, जगा प्रातः तारे को

प्रथम सँभाली कर्म-कलम। 

भरी विचारों की स्याही

चल पड़ी उठा लयबद्ध कदम। 


लेखा-जोखा घर-घर का था

रहा हृदय में द्वंद्व मचा।  


श्रम बूँदों के रहे बिगड़ते-

बनते चित्र कवित्त भरे। 

अक्षर-अक्षर रही जोड़ती

रधिया रानी धीर धरे। 


धार-धार धुलते भांडों पर

दो हाथों को नचा-नचा।


ढला दिवस, खींची लकीर

पर गीत अधूरा है तब तक। 

जोड़-तोड़ कर पूरा होगा

घर का गणित नहीं जब तक। 


लिख देगी अब रात नींद ही

जो कुछ भी है शेष बचा।



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