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Ajay Singla

Others

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रामयण-२ ; सती जी का सन्देह

रामयण-२ ; सती जी का सन्देह

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त्रेता युग में,सती जी, शिवजी 

अगस्त्य मुनि के पास गए थे 

राम कथा को सुन के दोनो

मन से वो संतुष्ट भए थे


उसी समय में हरण के कारन 

सीता जी ने कष्ट सहे थे 

सीता जी की खोज में दोनों 

राम और लक्ष्मण भटक रहे थे


शिव सोचें प्रभु दर्शन करूँ कैसे 

किसी को पता न लग जाये पर 

सच्चिदानन्द की जय हो बोले 

प्रणाम किया झुका के अपना सर


सती जी को सन्देह हुआ कि 

जिसकी महिमा शिव भी गाएं 

मनुष्य रूप में क्या ये वही हैं 

 विष्णु का अवतार कहलाएं


पत्नी विरह में भागते फिरते 

आँख से आँसू इनके बह रहे 

शिवजी भी ये जान गए पर 

सती जी को वो कुछ न कह रहे


जब सन्देह न मिटा सती का

तो देने को सती जी को शिक्षा 

कहा अगर तुम न मानो तो 

जा के तुम ले लो परीक्षा


सती ने वेश बनाया सीता 

उसी मार्ग पर चलतीं आगे 

जिस मार्ग पर राम आ रहे 

सीता को खोजते भागे भागे


राम तो सब कुछ ही जाने हैं 

कहते माता, वन में अकेली 

शिव शंकर जी नहीं दिख रहे 

समझ न पाया ये पहेली


चारों तरफ राम छवि देखि 

और मान गयीं विष्णु है ये , जब 

मन में दुःख और ग्लानि भर गयी 

संकोच में शिव के पास गयीं तब


डर के मारे छिपा लिया सब 

शिव को कुछ भी न बताया 

शिव तो अन्तर्यामी ठहरे 

ध्यान लगाकर पता लगाया


पता चला जब वेश बदल के 

राम को मिलीं सीता स्वरुप में 

संकल्प किया मन में, अब सती से 

भेंट न हो कभी पत्नी रूप में


प्रभु प्रतिज्ञा करी , आकाशवाणी हुई 

सती जी ने शिव जी से पूछा 

क्या प्रतिज्ञा , की बतलाओ 

क्या मन में है, क्या है इच्छा


दोनों जब कैलाश पर पहुंचे 

सती ने तब ये जान लिया था 

अखंड समाधी ले ली शिव ने 

शिव ने सती को त्याग दिया था


हजारों वर्ष जब बीत गए थे 

शिवजी ने तब समाधी खोली 

सती ने उनको प्रणाम किया ,पर 

मुख से वो कुछ भी न बोलीं


ब्रह्मा ने दक्ष प्रजापति को 

प्रजापतिओं का नायक बना दिया 

दक्ष ने सभी देवताओं को,

मुनियों को बुलाया, एक यज्ञ किया


ब्रह्मा,विष्णु, महेश को छोड़ कर ,

देवता सभी विमान में आएं 

सती जी पूछें शिवजी से कि 

विमान ये सुन्दर कहाँ को जाएँ


शंकर जी ने बताया सब तो 

दक्ष पिता की याद थी आई 

पिता के यज्ञ में मिलने उनसे 

जाने की इच्छा जताई


प्रभु बोले न्योता नहीं हमें 

अनुचित है ऐसे ही जाना 

माना दक्ष से मेरा विरोध है 

पर चाहिए था हमको भी बुलाना


मुख्य गणों को साथ भेज दिया 

जब सती जी ने कहना न माना 

सब देवों का भाग वहां पर 

पर शिव जी का भाग वहां ना


सती को तब था गुस्सा आया 

सबको थी फटकार लगाई 

शरीर भस्म कर दिया अग्नि में 

यज्ञ के लिए जो थी जलाई


शिवजी को जब पता चला तो 

बीरभद्र को भेजा वहां पर 

सबको उचित दंड देकर वो 

वापिस पहुंचे कैलाश के ऊपर


मरते हुए सती जी ने भज कर 

वरदान ये माँगा विष्णु जी से 

जब भी दूसरा जन्म मैं पाऊं 

 व्याह मेरा हो प्रभु शिवजी से


 





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