रामायण-किष्किंधा कांड
रामायण-किष्किंधा कांड
दो मानव सुग्रीव ने देखे
उनकी ओर थे बढ़ रहे,
भेजा हनुमान को पता लगाने
क्या युक्ति वो गढ़ रहे।
ब्रह्मचारी का वेश बनाकर
पूछा कहाँ से आए हो,
कौन हो तुम और क्या नाम है
मित्र हो या पराये हो।
जब पहचाना श्री राम को
चरणों में सर दे दिया,
वानरराज के पास ले जाने
कंधे पर उनको ले लिया।
अग्नि को फिर मान साक्षी
मित्रता का वचन दिया ,
आभूषण सीता के सौंपकर
उनको ढूंढ़ने का प्रण किया।
राम का हाथ सिर पर सुग्रीव के
बालि को तब ललकारा,
तीर धनुष से छोड़ा राम ने
बालि की छाती पर मारा।
बालि ने फिर प्राण त्यागे
देव लोक को चले गए,
राजा तब सुग्रीव बन गए
अंगद तब युवराज भये।
सुग्रीव ने भेजी वानर सेना
दिए वचन का मान किया,
हनुमान को राम ने दी मुद्रिका
तब सब ने प्रस्थान किया।
वानर एक गुफा में पहुंचे
सम्पाती से भेंट हुई ,
सो योजन का ये समुन्दर
पार जायेगा जो कोई।
सीता का तब पता चलेगा
मुझे पता है वो हैं वहीँ।
जामवंत हनुमान से कहते
तुमसे बढ़कर कोई नहीं।
जामवंत ने हनुमान को
याद दिलाया कौन हैं वो,
सुनते ही वापिस आ गयी
सब शक्तियां भूल गए थे जो।
