पूत सपूत भारत जैसे
पूत सपूत भारत जैसे


अपने कामो से जो अपने,
घर को स्वर्ग बनाते हैं।
पूत सपूत भारत जैसे तो,
कहीं नहीं मिल पाते हैं ।।
मात पिता से बेहतर जग में,
कौन बताओ तारक हैं।
संतति के हित पालक ही तो,
कष्टों के संहारक हैं ।।
जख्मों के उपचार में चाहे,
वक्त लगे कितना ही पर।
पीड़ा पीड़ा नहीं लगे वो,
ऐसे दर्द निवारक हैं ।।
मात पिता को श्रवण बने जो,
चार धाम करवाते हैं।
पूत सपूत भारत जैसे तो,
कहीं नहीं मिल पाते हैं।।
आज्ञा मान पिता की वन में,
चले बने रघुराई हम।
कैकई को भी नहीं मानते ,
दुःखों की परछाई हम।।
मात पिता को दुःख देना तो,
हर्गिज नहीं गंवारा हैं।
भाई हित राज्यासन छोड़ा,
बने राम से भाई हम।।
जो अपने जनकों के खातिर,
वन वन ठोकर खाते हैं।
पूत सपूत भारत जैसे तो,
कहीं नहीं मिल पाते हैं ।।
माँ की आज्ञा पालन को जो,
डटा रहा निडर होकर।
सिर कटवा कर वचन न तोड़ा ,
हर सुख को मारी ठोकर ।।
इसीलिए गणेश कहलाया ,
प्रथम पूज्य वो धरती पर।
मान और सम्मान जिंदगी,
को पाया जिसमें खोकर।।
सातों लोकों में जिसके गुण,
अब भी गाए जाते हैं।
पूत सपूत भारत जैसे तो,
कहीं नहीं मिल पाते हैं ।।
हर गुलशन को माली ही तो,
मनचाहा महकाते हैं।
बच्चों में जनकों के खून के ,
लक्षण गुण तो आते हैं ।।
जो बोया है वो काटेंगे,
झूठी नहीं कहावत है,
संस्कारों से सिंचित पौधे,
नहीं सूखने पाते हैं ।।
जो सहराओं को भी अपने,
श्रम जल से हरियाते हैं।
पूत सपूत भारत जैसे तो,
कहीं नहीं मिल पाते हैं ।।