पुञ्ज
पुञ्ज
1 min
552
हो गया है दुःख अमावस की रात सा घना
खुशियों के दीप से इसे रोशन ज़रा सा कर दो
इक दिया है इक अँधेरी रात है घनी बड़ी
दोनों में से जीते जो वो आस है सबसे बड़ी
देखना है दीये के आगोश में खो जाये रात
या दीया इस रात के आगोश में खा जाये मात
अपना अपना मर्म है भयभीत या भयहीन हो
वक्त सबका आएगा बुरा आज तो कल हो भला
निशाकर लाचार है जो आज अपने मार्ग पे
आएगा लेकिन वही कर जायेगा रोशन जहाँ
प्रेरणा ले उस शशि से दीप बनकर आ यहाँ
पुंज है तुझमें प्रकाशित ढूढ़ता तू फिर कहाँ
ढूढ़ता तू फिर कहाँ....।
