आम के बगीचे वाळी
आम के बगीचे वाळी
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बचपन में आम के पेड़ पर खूब मस्ती की थी
छुपन छुपाई से ले के पकड़ा पकड़ी तक की हस्ती थी
उस वक़्त ज़िंदगी भी तो बेबाक हँसती थी
अब वो दिन नहीं हैं, वो आम का बगीचा नहीं है
पर मस्त हवा का झौंका सा मेरा मन यहीं है।
फ़िर एक दिन किसी आम के बगीचे वाली से बात हुई
आम सुनते ही मेरे दिले जमीं पे बिन बादल बरसात हुई
कहीं ना कहीं फ़िर से बचपन याद हो आया था,
वो दिन जब मैं पेड़ पर चढ़कर आम तोड़ लाया था
मुझे बचपन याद दिलाने वाली है, वो आम के बगीचे वाली है
