पत्र
पत्र
प्रिय स्टोरी मिरर
कैसे हो भैया तुम ?
खूब मजे कर रहे हो
लोगों को पढ़ मजा ले रहे हो ।
आज कविता नहीं
पत्र लिख रही हूँ
वादा पूरा कर रही हूँ
कुछ लिख रही हूँ।
कई बार पढ़ा यह विषय
दिन भर घूमा मन मस्तिष्क में
क्या लिखूँ यह सोच न पाऊँ
बिन लिखे भी रह न पाऊँ।
फिर सोचा तुम्हे ही पत्र लिखूँ
बुरी आदत की चर्चा करूँ
पर भाई जब कोई बुरी आदत नहीं
तो चर्चा किस पर करूँ!
एक बात तो पक्की है
तुम भी किसी से कम नहीं
ढूँढ - ढूँढ कर विषय लाए
सबके मन की थाह पाएँ।
नया साल पूरा होने को आया
तुमने खूब साथ निभाया
किसी न किसी बहाने
सबको लिखने पर लगाया ।
लोग जैसे करते हैं पूजा
मैं सोने से पहले लिखती कविता
चाहे कुछ भी हो जाए
अपना लेखन होकर जाए।
सारा दिन सोचा मैने
पर ऐसा कुछ न पाया मैने
झूठी तारीफ नहीं करती अपनी
सत्य कहती हूँ जो कहनी।
तुमने पूछा सो बताना चाहा
भाग्यशाली हूँ जो सात्विक जीवन पाया
खाना पीना सबकुछ स्वच्छ
अच्छी आदतों से स्वस्थ।
लोग जब करते कर्म बुरे
पिछले जन्म के फलों से तोलते
पर मैं बिल्कुल अलग कहूँगी
अच्छे कर्म थे जो भारत में पले ।
संस्कारों की गंगा यहाँ बहे
मैं भी उसमे डुबकी लगाऊँ
पाप की तो बात नहीं
सत्कर्म ही करती जाऊँ।
मात पिता का साथ न्यारा
जीवन का पवित्र सहारा
कोई ऐब न किसी बच्चे में आया
सबने सुन्दर जीवन पाया ।
आदत पड़ना तो दूर की बात
कभी संगत में भी नहीं अहसास
जैसे हम वैसे हमारे साथी
सबकी एक सी जीवन बाती ।
जो सीख बचपन से मिली
जीवन भर उनका पालन हुआ
बुरी आदत की तो बात ही छोड़ो
अच्छी का निर्वाह मुश्किल हुआ ।
एक बात और बताऊँ भैया
आज के युग में मजाक उड़वाऊँ
आऊटडेटेड मैं कहलाऊँ
फिर भी मैं खुशी से जी जाऊँ।
नहीं होती इस बात से दुखी
माडर्न सोसायटी से नहीं जुड़ी
समय बड़ा बलशाली है
दुनिया खूब देखी भली है ।
सारा दिन की जद्दोजहद में
एक बुरी आदत समझ आई
स्टोरी मिरर पर लिखने में
आजकल फोन बहुत चलाई।
सब मुझ पर हँसते हैं
कहते हैं यह बुरी आदत है
कितना समय लगा देती हो
कितना फोन चलाती हो ।
पत्र तुम्हे इसी लिए लिखा है
आज का विषय से उल्ट करूँगी
एक बुरी आदत जो लगी है
उसे अभी नहीं तजूँगी।
पहले सब आराम से चलता था
मन मर्जी से लिखती थी
अब इस नई दोस्ती में
मैं भी थोड़ी बिगड़ी हूँ
आफ्टर फिफ्टी मैन इज नौटी
गर मैं भी थोड़ा आदत बिगाडूँ
तो क्या हर्ज है !
यह मन के प्रति मेरा फ़र्ज है।
मन को भाता है सो लिखती हूँ
केवल अपने मन की करती हूँ
जो बात खुशी दे वो करती हूँ
ये आदत बुरी ,मुझे नहीं लगती है।
बस भैया अब बंद करती हूँ
जब आदत कोई बुरी नहीं
तो छोड़ने की जरूरत नहीं
जो है वह तुम्हे बता दी
चाह कर भी नहीं छोड़ूँगी ।
उम्र में बड़ी हूँ सो दूँगी आशीर्वाद
जीवन को सदा रखना सँवार
कोई बुरी आदत जीवन में न लाना
सादा जीवन उच्च विचार अपनाना।