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Krishna Bansal

Others

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Krishna Bansal

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पति-पत्नी

पति-पत्नी

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हम पत्नियाँ 

मन में बसा लेती हैं 

बचपन से ही 

गुड्डे गुड़िया के खेल से ही 

एक सपनों का राजकुमार 

सोचती हैं 

वह प्रेम की साकार मूर्ति होगा 

कृष्ण बन दुःख हरेगा 

मसीहा बन सुख का संदेश देगा 

आकाश के तारे तोड़ लाएगा 

पाताल से हीरे ढूंढ लाएगा 

हर चाही अनचाही इच्छा 

पूर्ण करेगा 

क्यों भूल जाती हैं 

वे भी एक मानव है 

एक प्राणी है 

उसकी भी कुछ सीमाएं हैं 

हमारी तरह।


हम पति 

बचपन से ही सजा लेते हैं 

मन में सपनों की एक

राजकुमारी सुंदर सी 

सलोनी सी 

नन्ही सी 

प्यारी सी 

सर्वगुण संपन्न 

हर स्थिति में साथ देने वाली 

मोम की गुड़िया सी 

क्यों भूल जाते हैं 

वह भी एक मानव है 

एक प्राणी है 

उसकी भी कुछ सीमाएं हैं 

हमारी तरह।


सपने तो सपने हैं 

सीमित रह जाते हैं 

हनीमून तक।

 

फिर शुरू होती है 

यथार्थ से टकराहट


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