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Tripti Dhawan

Others

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Tripti Dhawan

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पृथ्वी माता

पृथ्वी माता

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चहुँ दिशा में गूंज रही, जय जयकार तुम्हारी,

हम सब तो हैं प्राणी मात्र, तुम हो जननी हमारी ।।


हे माता पृथ्वी! हैं आकाश पिता श्री !

जय जयकार माँ प्रकृति तुम्हारी ।।


दोहन, शोषण से हम सब ने मिलकर इन्हें सताया था,

मां गंगा का निर्मल जल भी, कुलषित सा हो आया था,


आज यही नियति ने देखो कैसा चक्र चलाया दिया, 

वर्तमान में बिगड़ती स्थिति को अपने हाथों थाम लिया,


जिस प्रकृति को स्वच्छ करने में हर कदम थे फेल हुए,

हमारे कदमों पर रोक लगाकर उसने कैसा खेल किया,


जिसको हमने काटा, नोचा हर दिन उसका नाश किया

उस माता ने हम बच्चों की खातिर फिर खुद को तैयार किया ,


आज दशा को देख के दिल यही बात बतलाता है,

पूत कपूत भले ही हों , पर माता नहीं कुमाता है ।।





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