प्रश्न चिन्ह ?
प्रश्न चिन्ह ?


माता के गर्भ में
प्रवेश जीव का और
जन्म लेना उसका
कैसे?
यह है प्रारंभिक
प्रश्न जीवन का।
जब जीवन का
प्रादुर्भाव ही
प्रश्न से प्रारंभ
तो प्रश्नों से भय कैसा?
यद्यपि
यहाँ पग पग पर
क्षण-क्षण में मिलते हैं प्रश्न
वो भी कहीं और से नहीं
अपनी ही अंतरात्मा से
तथापि
वेदों में प्रतिपादित मधुर गीत
चरैवेति - चरैवेति
को गुनगुनाता हुआ
मानव हर परिस्थिति&
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हर कंटकाकीर्ण दुर्गम
पथ पार कर
कुछ प्रश्नों का उत्तर
पाता है
और
कतिपय अनुत्तरित
प्रश्नों की गठरी
लेकर कूच कर जाता है
उस परम तत्व की ओर
संभवतः जो हल करेगा उसकी
शेष रही उत्कंठाओं,
जिज्ञासाओं को
पुनः वापस आने तक
किन्तु उस परम तत्व का
आवास है कहाँ?
जीवन के इस
अंतिम दुरूह प्रश्न का उत्तर
आज तक अपेक्षित है।