प्रकृति और हम
प्रकृति और हम
प्रकृति हमारी जनक है
और हम प्रकृति के शिशु
प्रकृति ने हमे पुरे जीवन भर माता
के समान स्नेह किया,
हमे पौष्टिक भोजन दिया,
चोट लगने पर औषधियां से उपचार किया,
हमे जीवन जीने के लिए अॉक्सीजन दिया,
जिस तरह हम मां ने हमारे लिए समर्पण किया,
उसी तरह ही प्रकृति ने भी हमारी विलासिता
के लिए खुद को सदैव समर्पित किया,
जिस तरह पिता ने हमारा सरंक्षण किया,
उसी तरह प्रकृति ने हमे जीवन के हर
कदम पर सरंक्षण प्रदान किया,
पर हम सब निकले नाकाम बच्चे के समान
जिसने अपने जनक को वृद्ध होते
ही बेसहारा छोड दिया,
अपनी विलासिता के लिए वृक्षो की कटाई तो की
पर नए भवन मे एक कमरा अपने जनक के लिए बनाना भुला दिया,
बीमार होने पर वृक्षो से औषधियां तो प्राप्त की
पर नए पौधे कभी खाद देना का काम नही किया,
चमचमाती गाडियां खरीद कर अपने जनक को
प्रदुषण का उपहार दिया,
कभी सोचा है क्यो भुल बैठे हम अपने जनक को?
क्यो नाकाम शिशु की तरह अपने जनक को बेसहारा छोड दिया?
क्या जबाब देगें हम गर जो प्रकृति हम से पुछने लगे
कि तुमने पुरे जीवन मेरे लिए क्या किया?