प्रिय मेरे
प्रिय मेरे
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प्रिय मेरे....
ये कौन सी ऋतु है प्रिय मेरे
मधु से भीगती है बक्ष धरा की
छिप जाऐ अभिमानी सूरज कभी कभी
उभर आती है मिट्टी से भाँप भी ।
ये कौन सी ऋतु है प्रिय मेरे
हरे पत्तों की तरुणाई भाऐ मन को
सरल भाव से भर जाए कजरारे नैन
और तरसाए ख़ुशबू बनफूल की तन को ।
ये कौन सी ऋतु है प्रिय मेरे
मूर्झाऐ भी मुस्काऐ भी चमन में बहार
किसी की आश से कोहरेपन को
बाँहों में लिये तुम्हारे ख़ास सपनों को ।
ये ऋतुओं की सम्भार सम्भावनाओं की आकार
प्रिय मेरे तुम ही सज़ा दो सुरों की झंकार ।