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Savita Gupta

Children Stories

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Savita Gupta

Children Stories

परिंदे

परिंदे

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भुवन के उठने से पहले,

भोर का गान गाते निकले।

लय बद्ध उड़ते हैं परिंदे,

शाख़ों के मासूम बाशिंदे।


साँझ होते ही लौट जाते,

घोंसले में ची ची की धूम मचाते।

तिनका तिनका चुन चुनकर,

नीड़ बनाते हैं बुन बुनकर।


चुन चुन दाना चोंच में भरती,

उड़ उड़ बुलबुल क्षुदा मिटाती।

पंख फैलाए अंक में भरती,

चूज़ों को उड़ना सिखाती।


शाख़ों पर फुदकते रंगबिरंगे,

चित्त चोर चंचल कोमल परिंदे।

प्रकृति के अनुपम कृति को

क्यों पिंजर बद्ध हम करते?


क्यों नहीं आते नभचर?

क्यों विलुप्त हो रहे गगनचर?

मुँडेरों पर गुम विहंग का कलरव,

दोषी कौन ? पूछते हैं ,खेचर।



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