प्रेम
प्रेम
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चंद तारीखों में न सीमित कर मोहब्बत को
हर दिन हर दिल से बाँटा कर मोहब्बत को
बीत गया जो लम्हा आयेगा न फिर पलटकर
आने वाले लम्हे को जी जाओ मोहब्बत भर
इंसानियत से बढ़कर न प्रेम यहाँ कुछ भी
थाम लो पाँव अपने जरूरत जहाँ इंसा की
दिन रोज कम हैं होते हमारी जिंदगी से
जी जाओ इस तरह याद करें सब मोहब्बत से
आज कल हो या परसों न टालो दिल की बातें
कह आज दो बस दिल से हर लफ्ज़ मोहब्बत के
याद आयी थोड़ी थोड़ी या हलचल समुन्दर में
धार मिल गयी थी सागर में जा के मोहब्बत से।
