पितृ दर्द
पितृ दर्द
आहा इतना स्वादिष्ट भोजन
इतने सारे पकवान मेरे लिए
पहले तो कभी नहीं देखे
पहले तो कभी नहीं चखे
यह खीर हलवा पूरी सब्जी
आहा इतना सम्मान पहले तो नहीं मिला
क्या करूं इनका
बस दूर बैठकर देख सकता हूं
खा नहीं सकता छू नहीं सकता
उम्र भर तिरस्कार सहा है
फिर अब इतना स्नेह क्यों
इतनी खातिरदारी क्यों
ओहो इतने सुंदर वस्त्र
आसन भी बिछाया है पानी
पानी का लोटा भी है
अरे वाह
इतना इंतजाम सब कुछ मेरे लिए है
तीर्थ पर जाकर पूजा पाठ जीते जी
तीर्थ घुमाया नहीं मरने के बाद सही
सब्जी मत काटो उपले मत तोड़ो
सुई कैंची मत चलाओ दादा जी आए हैं
उनको चुभ जाएगी,
अब क्या चुभेगी अब क्या दर्द होगा
जब जीवित था प्राण थे दर्द होता था
तब तो शब्दों के बाणों से जिस्म से
रूह तक छलनी कर दिया
आज जब एक हवा हूं तब क्या दर्द होगा
आज मेरा दर्द दिखता
तब मेरे आंसू भी नहीं दिखते थे
एक बूंद पानी के लिए तरसा हूं
एक एक निवाला खाने के लिए तड़पा हूं
अब तो ना भूख है ना प्यास है ना दर्द है
ना जख्म है बस अफसोस है
इस बात का कि तुम्हें अच्छे संस्कार ना दे पाया
रहने दो यह सब कर्मकांड
इनकी अब कोई जरूरत नहीं है
मुझ तक कुछ पहुंच ही नहीं पाएगा
जाने कितनी योनियों में यूं ही भूखा प्यासा
भटकता रह जाऊंगा
सुन बेटा मेरी दुआएं तब भी तेरे साथ थी
अब भी तेरे साथ है, तू हमेशा खुश रहे
आबाद रहे बस यही मेरी अरदास है
ना तब तेरा बुरा चाहा था ना अब
तेरा बुरा चाहूंगा प्रभु से तेरे नाम की
सिफारिश लगाऊंगा खुश रखना मेरे
बच्चों को सदा तेरे गुण मैं गाऊंगा
उनके हिस्से की तकलीफ सारी
हंसते-हंसते सह जाऊंगा हर जन्म
में उनका बड़ा बन अपने सारे फर्ज
निभाऊंगा सहकर दुख दर्द सारे
कभी शिकायत नहीं लगाऊंगा ।।
