पिता
पिता
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पिता पर क्या लिखूँ..
वह तो खुद कलमकार हैं ,
किताब हैं,
जिन्दगी का एक
अधूरा किस्सा हैं।
जो सदैव आगे
पीढ़ी दर पीढ़ी
वट वृक्ष की तरह जीवंत हैं ,
चलायमान हैं।
प्रसाद के मनु की तरह
एक महामानव हैं
जिसने सृजित किया
कामायनी को !!
