पीले पत्ते...
पीले पत्ते...
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पीले पड़़ गयें हैं
पत्ते शाखों पर,
फिर भी कलियाँ पनप रहीं हैं।
देखो, यही तो है
विधाता का करिश्मा।
जीवन की डाली से,
सूखे पत्तों की तरह,
झड़़ जाते हैं झूठे रिश्ते नाते।
संग चले बस वहीं चंद,
जो आत्मिक बंधन से बंधे हों।