पीड़ाओं का स्वाद
पीड़ाओं का स्वाद
मकानों के काले कोनों में
मच्छरों का अपना जाल है
वस्तुओं के भावों में आज
किलो में भाव पूछना गुनाह है। ।
शक्ल और अक्ल ना मिले
अक्ल से कल लांछल ना लगे
लांछल के छीटों से गज का मुंह ना भीगे
तब ऐसे जल से गज की प्यास भला कैसे बुझे।
गज भर की छाती पर
आ गिरा चूल्लू भर पानी
कोई काम नहीं था तो पगली
भर भर कर लाने लगी पानी
कोई हो काम पर आराम करना साथी
वक्त का चला आया पहिया कहता यही
मन के जख्मों पर नमक है कहीं
फिर भी इसे बना स्वाद अपनाया वहीं ।
स्वाद पूछने पर हम ना देंगे जवाब
कुछ सवाल स्वाद से हमारे पास है
पास में हमारे कुछ प्रसिद्ध स्वाद है
ये स्वाद हमारे बड़े चटपटे लाजवाब है ।
चुपके से जूबां में कोई स्वाद समाया
जुबान ने अन्य के कानों में बताया
हम चखकर ना समझे स्वाद की माया
अन्य ने अनोखा बताकर सबको भरमाया
भ्रम में स्वाद की बात हर ओर हूई
यह यहॉ से मकानों के कोनों में जाकर हुई
मंच सजा मन में कि स्वाद में मीठी वाणी देगी सुनाई
रंच थोड़ा सा हूआ और जुबान मंच पर प्रपंच ले आई ।
पंचो ने मिलकर पंचायत की
मंचो ने मिलकर मंत्रणायें की
कडवी जुबान की बातों की
प्रत्येक ने कडी़ निंदा की
कडवी जुबांन भला किसे प्यारी थी
लेकिन जब मीठा खाने की मनाही हो
तब कडवा खाने की बारी आनी थी
यहॉ बारे में हमारे कडवी बातें थी
बाताें से हमको हुई पीडा थी
पीड़ाओं के पड़ाव में हमको
यात्रायें अपनी अकेले करनी है ।