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Shubhra Ojha

Others

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फुटपाथ का आदमी

फुटपाथ का आदमी

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नहीं हैं मेरा कोई घर

ना कोई ठौर - ठिकाना

चलते चलते जहाँ मैं रुक जाऊँ

बन जाए वहीं इक रात का आशियाना।


हर दिन के लिए जीता हूँ

कल का मैं नहीं सोचता,

हाथ फैलाता हूँ दूसरों के सामने

मिल जाएं कभी कुछ पैसे

तो पेट भर जाता

वरना कभी- कभी मैं

खाली पेट ही सो जाता,


मेरे बारे में कोई सोचता नहीं

ना मुझे किसी से कोई वास्ता,

मैं फुटपाथ का आदमी हूँ

फुटपाथ से ही मेरा राब्ता।


*राब्ता - सम्बन्ध










 







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