फिर खड़ा हो जाऊंगा
फिर खड़ा हो जाऊंगा
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कहीं गिरे औंधे मुंह
तो, मैं फिर खड़ा हो जाऊंगा।
बिना किसी के आस लिए
मंजिल के होकर रह जाऊंगा।।
पग कि बेड़ियां तोड़कर
पंख से हम आसमां नापूंगा।
बिना समुद्र में उतरे हुए
उसकी गहराई कैसे जानूंगा।।
अंधियारे ने रोक लिया
तो खुद का एक दीप जलाऊंगा।
जहां तक चलेगी आखरी
सांसें वहां सें जाकर आऊंगा।।
स्वयं पे विश्वास होगा तो,
तब जाकर मनीष बन पाऊंगा।
जो कही गिरे औंधे मुंह
तो, मैं फिर खड़ा हो जाएंगे।।