आज़ाद बेड़ियां
आज़ाद बेड़ियां
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जब खुद ही बेड़ियां तोड़ेंगे
तब उन्हें ऐसा एहसास होगा।
जैसे कि दूसरों के इच्छाओं से भरें,
आसमान से टूटते तारे,
वो उनकी स्वयं कि इच्छाएं होगी।
तब ईंटों को आकार देना छोड़
कोरे कागज़ पर अक्षर ढालेंगे।
उन्हें अपने अज्ञात शोषित होने कि
समय सीमा का ज्ञात हो जायेगा।
फैक्ट्रियों कि बड़ी-बड़ी दीवारें
उनके नजरों में छोटी हो जाएंगी।
आने वाली पीढ़ियों को दास्तां सुनाएंगे।
खुद को गुलाम तो एक मुल्क को
शायद किस्सों में आजाद बताएंगे
अगर उनकी बेड़ियां टूटेगी तो ......