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Manish kumar Gautam

Others

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Manish kumar Gautam

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एक ग़ैर-मुस्लिम दोस्त

एक ग़ैर-मुस्लिम दोस्त

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सालों से रह कर तेरे मजहबी अंदाज में,

तुझे अब, ग़ैर के तजरुबो से बयां करनें लगा हूं।

सियासत के सियासी बोलियों में बंधकर,

तुझ पर मैं नफ़रती सियासी तंज़ कसता हूं।

मुल्क के आजादी मे लहू तेरे भी बहे थे,

भूलकर मैं पीठ पीछे ग़ैर मुल्कि कहता फिरता हूं।

ना जाने कितनी दफा मेरे दुःखो में शामिल थे

जानते हुए भी कभी तेरे लिए आवाज नहीं बन पाता हूं

सेवइयां तो कभी बिरयानी खाकर भी,

तुझ पर आतांकवाद का लांछन मढ़ता जाता हूं।

क्या करूं, मैं मजबूर भी हूं, खुद से भी,

ना चाहते हुए, नफ़रती हवाओं में जो सांसें लेता हूं।


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